China और WTO: क्या चीन ने “विकासशील देश” का दर्जा छोड़ा? अमेरिकी दबाव या रणनीतिक बदलाव?
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में चीन ने हाल ही में एक बड़ा कदम उठाया है: उसने घोषणा की है कि अब विकासशील देशों (Developing Countries) को मिलने वाले Special and Differential Treatment (SDT) लाभों के लिए आगे की वार्ताओं में चीन उन्हें नहीं माँगेगा।
लेकिन क्या इसका मतलब है कि चीन “विकासशील देश” का दर्जा पूरी तरह से छोड़ रहा है? और क्या यह कदम विशेष रूप से अमेरिकी दबाव के चलते है? आइए विस्तार से देखें।
SDT क्या है?
WTO के नियमों के अंतर्गत, विकासशील देश उन देशों को विशेष और भेदभाव पूर्ण (special and differential) सुविधा देते हैं। इनमें शामिल है:
नई नियमों को लागू करने में अधिक समय
छोटे या सीमित संसाधनों वाले देशों को सब्सिडी या वित्तीय सहायता
व्यापार शर्तों में रियायतें
ये रियायतें आम तौर पर उन देशों के लिए होती हैं जिनकी प्रति-व्यक्ति आय कम है, अर्थव्यवस्था कम विकसित है, और व्यापार संरचनाएँ कमजोर हैं।
चीन का नया फैसला: “SDT लाभ नहीं माँगेगा, लेकिन विकासशील दर्जा बरकरार”
क्या बदला है: चीन ने कहा है कि भविष्य में WTO की किसी भी नई या वर्तमान वार्ता में वह विशेष और भेदभाव पूर्ण उपचार, यानी SDT सुविधाएँ, नहीं मांगेगा।
क्या नहीं बदला: चीन अभी भी अपने आप को विकासशील देश (developing country) मानता है। इस दर्जे को उसने पूरी तरह नकारा नहीं है।
अमेरिकी एवं अंतर्राष्ट्रीय दबाव
अमेरिका की मांग: वर्षों से अमेरिका यह तर्क करता आया है कि बड़े आर्थिक आकार वाले, निर्यातक शक्ति वाले देश (जैसे चीन) विकासशील देश का दर्जा हासिल कर विशेष लाभ उठा रहे हैं, जबकि उनकी आर्थिक क्षमता कहीं अधिक है।
WTO सुधारों की प्रक्रिया में यह एक बड़ी बाधा माना जाता है — क्योंकि कई देशों का कहना है कि SDT लचीला नहीं है और बड़े देशों को इससे अनुचित लाभ मिलते हैं।
चीन की प्रतिक्रिया: चीन ने कहा है कि यह कदम WTO सुधारों की दिशा में है और वैश्विक व्यापार प्रणाली को अधिक न्यायसंगत बनाने के लिए है। साथ ही, चीन अभी भी “वैश्विक दक्षिण” (Global South) का हिस्सा होने का दावा करता है, और अन्य विकासशील देशों के हितों की रक्षा करना जारी रखेगा।
क्या यह कदम “विकासशील देश” दर्जे का पूर्ण त्याग है?
संक्षिप्त उत्तर: नहीं।
चीन ने स्पष्ट किया है कि वह विकासशील देश के दर्जे से पूरी तरह अलग नहीं हो रहा है; बल्कि उसने केवल भविष्य की वार्ताओं में SDT लाभ माँगने से इनकार किया है।
वर्तमान में मौजूद समझौते या पूर्व निर्धारित लाभ, जिनके लिए चीन पहले से पात्र है, उन पर इस फैसले का असर अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
प्रभाव और संभावित लाभ-हानि
सकारात्मक संभावनाएँ
1. बहुपक्षीय व्यापार सुधार: इस कदम से WTO में बहुपक्षीय वार्ताएँ अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बन सकती हैं।
2. दूसरे देशों के साथ बेहतर संबंध: अमेरिका और यूरोपीय देशों सहित उन देशों के साथ व्यापारिक तनाव कम हो सकता है जो इस विषय पर आलोचना कर रहे थे।
3. छवि सुधार: अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की “जिम्मेदार वैश्विक शक्ति” की पहचान को बल मिलेगा कि वह कुछ विशेषाधिकारों का त्याग कर वैश्विक हित को प्राथमिकता दे रहा है।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
1. आर्थिक दबाव: SDT लाभों का त्याग कुछ उद्योगों या क्षेत्रों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
2. प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी: विकसित देशों के साथ प्रतियोगिता और कठिन होगी क्योंकि छूटें कम होंगी।
3. विश्वसनीयता और नीति रुझान: अन्य WTO सदस्य इस पर नज़र रखेंगे कि चीन पुराने समझौतों या मौजूदा लाभों से कब तक पीछे हटता है।
निष्कर्ष
चीन का यह निर्णय एक रणनीतिक बदलाव है, लेकिन पूरा “विकासशील देश” दर्जा छोड़ने जैसा नहीं है। यह एक मध्यस्था-सी स्थिति है जिसमें चीन:
विकासशील देश के रूप में बनी हुई पहचान रखता है,
परंतु अब उन विशेष लाभों को नहीं माँगेगा जो अक्सर विवाद का कारण बनते हैं।
क्या यह सिर्फ अमेरिकी दबाव का असर है? आंशिक रूप से, हाँ। लेकिन इसके पीछे चीन की अपनी आर्थिक स्थिति, विश्व व्यापार में बढ़ती ज़िम्मेदारियाँ और WTO सुधारों में भूमिका निभाने की रणनीति भी शामिल है।
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